सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद कई बच्चों को माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा, जिससे भारतीय परिवारों में संपत्ति संबंधी अधिकारों को लेकर नई स्पष्टता आई है. इस फैसले ने माता-पिता की संपत्ति को लेकर अचानक चर्चा को बढ़ा दिया है, खासकर उन मामलों में जब माता-पिता अपनी संपत्ति बच्चों के नाम करते हैं या गिफ्ट देते हैं और बाद में उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है. इसके साथ-साथ ये भी साफ हुआ है कि अगर बच्चे माता-पिता की देखभाल नहीं करते, तो उनकी संपत्ति और गिफ्ट वापस लिए जा सकते हैं.
Supreme Court Verdict 2025
संपत्ति विवादों में अक्सर ये माना जाता था कि बेटे-बेटी को माता-पिता की संपत्ति में स्वाभाविक रूप से हिस्सा मिल जाता है, चाहे संपत्ति पैतृक हो या स्वयं अर्जित. मगर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि माता-पिता की स्वयं अर्जित (Self-Acquired) संपत्ति में पिता के बेटा-बेटी का अपने आप अधिकार नहीं बनता, जब तक कि कोई वैध वसीयत (Will) या उत्तराधिकार प्रमाणित न किया जाए. अदालत ने ये कहा कि परिवार में संतान होने मात्र से परिवार की संपत्ति ‘सबकी संपति’ नहीं हो जाती; इसके लिए संपत्ति की वास्तविक प्रकृति और खऱीद की प्रक्रिया देखना जरूरी है.
अगर संपत्ति बंटवारे के बाद परिवार के किसी सदस्य को मिली है, तो वह व्यक्ति उस संपत्ति का पूर्ण मालिक बन जाता है और उसमें अन्य का अधिकार नहीं रहता. अदालत के फैसले में यह भी कहा गया है कि अगर बेटे-बेटी ये दावा करते हैं कि संपत्ति साझा (Joint Family Property) थी, तो उन्हें इसका स्पष्ट सबूत देना होगा कि संपत्ति खरीदने के लिए सम्मिलित परिवार के फंड इस्तेमाल किए गए थे.
माता-पिता की सेवा के नियम
सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम (Welfare of Parents and Senior Citizens Act) के तहत माता-पिता यदि अपनी संपत्ति या गिफ्ट संतान के नाम स्थानांतरित करते हैं, तो शर्त होगी कि बच्चों को उनकी सेवा करनी होगी.
यदि बच्चे अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते, तो माता-पिता संपत्ति या गिफ्ट वापस ले सकते हैं तथा ट्रांसफर को शून्य घोषित किया जा सकता है. इससे बच्चों को अब अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, क्योंकि बच्चों को संपत्ति के साथ-साथ माता-पिता की सेवा भी गंभीरता से करनी होगी.
सरकार ने इस नियम का पालन सुनिश्चित करने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण कानून में स्पष्ट प्रावधान जोड़े हैं, जिससे माता-पिता अपनी संपत्ति सुरक्षित रख सकें. अदालत ने ऐसे फैसले में माना कि माता-पिता के हालात सुधारने के लिए ये फैसला जरूरी था और ये बच्चों को अपने माता-पिता के प्रति संवेदनशील बनाएगा.
संपत्ति के प्रकार और अधिकार
भारतीय कानून के मुताबिक संपत्ति दो प्रकार की होती है— पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) और स्वयं अर्जित संपत्ति (Self-Acquired Property). पैतृक संपत्ति में बेटा-बेटी को जन्म से अधिकार मिलता है, वहीं स्वयं अर्जित संपत्ति में माता-पिता की इच्छा के अनुसार ही अधिकार मिलता है. हिन्दू उत्तराधिकार (Hindu Succession Act) में बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार दिया गया है; लेकिन स्वयं अर्जित संपत्ति का अधिकार वसीयत या माता-पिता की मर्जी पर निर्भर करता है.
अगर वसीयत नहीं है, तब भी स्वयं अर्जित संपत्ति में अक्सर विवाद रहते हैं और अदालतें स्पष्ट दस्तावेजी प्रमाण देखती हैं, जैसे खरीद के स्रोत, ट्रांसफर डीड, आदि. पैतृक संपत्ति विभाजन के बाद, प्रत्येक सदस्य की हिस्सेदारी उसकी व्यक्तिगत संपत्ति बन जाती है. पूरे मामले में अदालतों ने बार-बार यह साफ किया है कि बेटे-बेटी को संपत्ति में अधिकार के लिए स्पष्ट कानून और सबूत की जरूरत है.
आवेदन कैसे करें
अगर किसी माता-पिता ने वसीयत लिखी है या अपनी संपत्ति का ट्रांसफर गिफ्ट डीड के माध्यम से किया है, और बच्चे सेवा नहीं कर रहे हैं, तो माता-पिता वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कर सकते हैं. आवेदन के लिए वरिष्ठ नागरिक पोर्टल, जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय या संबंधित समाज कल्याण विभाग से संपर्क करना होगा. वहां दस्तावेजों की जांच के बाद संपत्ति वापस लेने की कार्रवाई हो सकती है.
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सेवा नहीं करने वाले बच्चों को माता-पिता की स्वयं अर्जित और ट्रांसफर की गई संपत्ति में हिस्सा मिलने से रोकता है. अब संपत्ति के अधिकार के साथ बच्चों को अपने माता-पिता का ख्याल भी रखना अनिवार्य होगा, जिससे परिवार में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता बढ़ेगी.