आजकल आम लोगों की चिंता मिनिमम बैलेंस को लेकर बढ़ती जा रही है। बहुत से बैंक अपने ग्राहकों से सेविंग्स अकाउंट में एक तय रकम बैलेंस रखने की शर्त रखते हैं। इसका पालन न करने पर जुर्माना या पेनल्टी लगा दी जाती है। इसी बीच, हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) गवर्नर ने 50,000 रुपये मिनिमम बैलेंस रखने को लेकर एक बड़ा बयान दिया है।
लोगों का कहना है कि इतनी बड़ी रकम लगातार अकाउंट में रखना आम वर्ग के लिए मुश्किल है। मिडिल क्लास और छोटे इनकम वालों के लिए यह बोझ साबित हो सकता है। गवर्नर ने स्पष्ट किया कि आरबीआई सीधे तौर पर मिनिमम बैलेंस तय नहीं करता, बल्कि यह पूरी तरह बैंकों की नीतियों पर निर्भर करता है। लेकिन उन्होंने साथ ही वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) का ज़िक्र करते हुए कहा कि बैंक को ऐसी शर्तें आम उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए।
इस बयान के बाद लोगों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या आने वाले समय में बैंक नियमों में बदलाव होगा। साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि सामान्य खाताधारकों और ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों के लिए अलग नियम बनाए जाएंगे या नहीं।
Bank Minimum Balance Update 2025
मिनिमम बैलेंस मतलब वह न्यूनतम रकम जो ग्राहक को अपने बचत खाते में हर समय रखना ज़रूरी होता है। अगर खाता धारक इस तय सीमा से कम बैलेंस रखता है तो बैंक उस पर पेनल्टी चार्ज कर देता है। अलग-अलग बैंकों में यह सीमा अलग होती है।
कुछ बैंक 1,000 रुपये से 10,000 रुपये तक मिनिमम बैलेंस रखते हैं, जबकि बड़े शहरों और प्रीमियम अकाउंट के लिए यह सीमा 25,000 से 50,000 रुपये तक हो सकती है। ऐसे में 50,000 रुपये जैसी राशि सामान्य उपभोक्ता के लिए एक बड़ी चुनौती है।
आरबीआई गवर्नर का बयान
आरबीआई गवर्नर ने साफ कहा कि आम जनता को ध्यान में रखकर ही बैंकिंग सिस्टम बनना चाहिए। वित्तीय समावेशन का मकसद यही है कि हर वर्ग का नागरिक बैंकिंग सुविधा का फायदा ले सके। यदि बैलेंस की शर्तें बहुत सख्त होंगी, तो गरीब और ग्रामीण वर्ग बैंकिंग से दूर हो सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक समय-समय पर बैंकों को दिशा-निर्देश ज़रूर देता है, खासकर जब बात अत्यधिक पेनल्टी या ग्राहकों से ज्यादा चार्ज वसूलने की आती है। लेकिन सीधे तौर पर मिनिमम बैलेंस तय करना बैंकों की स्वतंत्र नीति है।
जनधन अकाउंट और सामान्य जनता
गौरतलब है कि सरकार पहले ही प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत ऐसे बैंक खाते उपलब्ध करा चुकी है, जिनमें मिनिमम बैलेंस रखने की कोई शर्त नहीं है। इन खातों में ज़ीरो बैलेंस की सुविधा दी जाती है। खासकर गरीब परिवारों और ग्रामीण लोगों के लिए यह योजना बहुत मददगार साबित हुई है।
आज देशभर में करोड़ों लोग जनधन खातों के जरिए बैंकिंग से जुड़े हुए हैं। इनमें डेबिट कार्ड, बीमा कवर, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं। इस योजना ने मिनिमम बैलेंस की बाध्यता को खत्म कर आम लोगों को राहत दी।
क्या होगा 50,000 रुपये मिनिमम बैलेंस का असर?
अगर किसी बैंक में 50,000 रुपये का बैलेंस ज़रूरी कर दिया जाता है तो इसका सीधा असर केवल मिडिल क्लास और छोटे व्यवसायी वर्ग पर पड़ेगा। बड़ी आय वर्ग वाले के लिए यह सुविधा मेंटेन करना आसान होगा, लेकिन सामान्य परिवारों के लिए मुश्किल बन जाएगा।
इससे एक तरफ़ जहां बैंक को अधिक डिपॉजिट मिलेगा, वहीं दूसरी तरफ़ ग्राहकों का भरोसा कमज़ोर हो सकता है। खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों में लोग बैंक खाते रखने से ही कतराने लगेंगे। यही कारण है कि गवर्नर ने सभी बैंकों को जनता की वास्तविक स्थिति को देखते हुए नियम बनाने की सलाह दी है।
सरकार और RBI से उम्मीदें
आम ग्राहकों की अपेक्षा है कि सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर ऐसे नियम बनाएं, जिससे मिनिमम बैलेंस की सीमा सबके लिए आसान और सुलभ हो। लोगों को लगता है कि जो योजना ज़ीरो बैलेंस खातों के लिए बनी है, उसी तर्ज़ पर सामान्य सेविंग्स अकाउंट में भी पेनल्टी कम होनी चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल पेमेंट और ऑनलाइन बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिए आसान शर्तें ज़रूरी हैं। अगर ग्राहक लगातार पेनल्टी से परेशान होंगे, तो बैंकिंग सेवाओं से उनका भरोसा उठ जाएगा।
निष्कर्ष
आरबीआई गवर्नर का बयान साफ इशारा करता है कि आम जनता की सुविधा सबसे अहम है। बैंक अपनी नीतियों को बनाते समय यह ध्यान रखें कि सभी वर्ग के लोग बिना बोझ महसूस किए बैंकिंग सुविधा का लाभ ले सकें। 50,000 रुपये मिनिमम बैलेंस सिर्फ अमीर तबके के लिए उचित हो सकता है, लेकिन देश की बड़ी आबादी के लिए राहत देने वाले नियम ही समय की ज़रूरत हैं।