Supreme Court Property Update 2025: अब इतनी देर में बनेंगे मालिक

Published On: September 30, 2025
Supreme Court Property Update 2025

भारत में संपत्ति से जुड़े विवाद लंबे समय से चले आ रहे हैं, जहां अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या सालों तक किसी जमीन या मकान पर कब्जा करने वाला व्यक्ति उसका मालिक बन सकता है या नहीं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर बड़ा और साफ फैसला दिया है, जिससे लाखों लोगों को सीधे असर पड़ सकता है। यह फैसला ‘एडवर्स पजेशन’ या प्रतिकूल कब्जा कानून से जुड़ा है, जहां कोई व्यक्ति सालों तक बिना मालिक की अनुमति के अगर प्रॉपर्टी पर काबिज है, तो वह मालिकाना हक मांग सकता है।

आमतौर पर भारत में कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जहां वास्तविक मालिक अपनी जमीन या संपत्ति से दूर रहता है, और किसी दूसरे व्यक्ति ने उस प्रॉपर्टी पर कब्जा जमा लिया होता है। ऐसी स्थिति में कानून क्या कहता है – क्या सिर्फ दस्तावेज या पंजीकरण ही असली हक देता है, या लगातार कब्जा भी अधिकार बन सकता है? सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में इस विषय को बिल्कुल साफ कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और मुख्य नियम

सुप्रीम कोर्ट के 2025 के इस ताजा फैसले में साफ कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार, खुलकर और शांतिपूर्ण ढंग से किसी प्राइवेट प्रॉपर्टी (जमीन या मकान) पर 12 साल तक कब्जा किए हुए है, और उस दौरान असली मालिक ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की, तो कब्जा करने वाला व्यक्ति अब उस संपत्ति का मालिक बन सकता है। यह नियम लिमिटेशन एक्ट 1963 के आर्टिकल 65 के तहत लागू होता है।

लेकिन, अगर जमीन या संपत्ति सरकार की है, तो इसमें 30 साल तक लगातार कब्जा जरूरी है। यानी सरकारी जमीन के मामले में बिना बाधा के लंबा समय बिताने के बाद भी कोर्ट केवल सही परिस्थितियों में ही कब्जा करने वाले के पक्ष में निर्णय देती है।

एडवर्स पजेशन के नियम के तहत, संपत्ति पर कब्जे का दावा करने वाले को यह साबित करना होगा कि:

  • उसने 12 साल (सरकारी जमीन के लिए 30 साल) तक संपत्ति पर खुलेआम, निरंतर और शांतिपूर्वक कब्जा किया।
  • यह कब्जा असली मालिक की मर्जी के खिलाफ, यानी बिना उसकी अनुमति के हुआ।
  • इस दौरान असली मालिक ने कब्जा छुड़वाने या आपत्ति जताने के लिए कोई कानूनी कदम नहीं उठाया।

यह भी तय है कि कब्जा शांति से और बिना जोर-जबरदस्ती किया होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर कब्जा जबरदस्ती, धोखे या छुपाकर किया गया है तो वह मालिकाना हक का आधार नहीं हो सकता।

क्या संपत्ति का रजिस्ट्रेशन ही काफी है?

इस फैसले की एक और अहम बात यह है कि अब केवल प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन या नामांतरण ही स्वामित्व का अधिकार नहीं देता। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ कागज़ी मालिक है लेकिन सालों-साल संपत्ति को संभाल नहीं पाया, और किसी दूसरे ने लगातार उसपर कब्जा रखा, तो ऐसा व्यक्ति अपना मालिकाना हक खो सकता है। यानी कब्जा और वैध दस्तावेज दोनों जरूरी हैं।

सरकार की नजर में यह कानून क्यों जरूरी

सरकार और कोर्ट बार-बार यह बताती रही हैं कि असली मालिकों को अपनी संपत्ति पर नजर रखनी चाहिए और कब्जा होते ही तुरंत कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। एडवर्स पजेशन का नियम उनके खिलाफ एक चेतावनी की तरह है – यदि अपनी संपत्ति की समय पर रक्षा नहीं की गई, तो कानून कब्जा करने वाले के पक्ष में निर्णय दे सकता है।

इससे समाज में जागरूकता आती है कि संपत्ति केवल कागज़ी नहीं, बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी अपने पास रखना जरूरी है। इससे गैरकानूनी कब्जों से निपटने में भी मदद मिलती है और अदालतों में जारी जमीनी विवादों को समयसीमा में सुलझाया जा सकता है।

अधिकार हासिल करने के लिए क्या करें?

अगर कोई कब्जाधारी 12 साल (सरकार के मामले में 30 साल) से अधिक समय लगातार संपत्ति पर है और असली मालिक ने आपत्ति नहीं की, तो ऐसे व्यक्ति को कोर्ट में आवेदन कर ‘एडवर्स पजेशन’ का दावा करना होगा। उसे सबूत पेश करने होंगे – जैसे वहां रहन-सहन, टैक्स रसीदें, बिजली-बिल, आसपास के लोगों के बयान वगैरह। कोर्ट तथ्यों की जांच के बाद ही मालिकाना हक का आदेश देती है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला बताता है कि अगर कोई व्यक्ति सालों तक शांति से कब्जा करके बैठा है, असली मालिक ने चुप्पी साधी है, तो कानून अब कब्जाधारी के पक्ष में खड़ा रहेगा। इसका सीधा संदेश यही है कि अपनी प्रॉपर्टी की रक्षा सजगता से करें, वरना वह किसी और की हो सकती है। यह कानून संपत्ति के सही और सुरक्षित उपयोग के लिए समाज हित में है।

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