भारत में तलाक के बाद महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई बार चर्चाएँ और भ्रम की स्थिति बनी रहती है कि क्या तलाक के बाद पत्नी के सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं या सरकार की ओर से कुछ सहायता उपलब्ध है। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और सरकार के नए फैसलों ने इस विषय को फिर से चर्चा में ला दिया है। बहुत सी महिलाएं जो अपने वैवाहिक जीवन से अलग हो जाती हैं, उन्हें आगे की जिंदगी में सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की चिंता रहती है।
सरकार ने इसी चिंता के समाधान के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, जिनका उद्देश्य तलाकशुदा, विधवा, या बेसहारा महिलाओं को आर्थिक मदद, सामाजिक समर्थन, और आवश्यक संसाधन देना है। इन योजनाओं का लाभ उठाकर महिलाएं अपने जीवन को बेहतर बना सकती हैं और अपने अधिकार सुरक्षित रख सकती हैं। इसके अलावा हाल ही में अदालत के महत्वपूर्ण फैसलों ने भी तलाकशुदा महिलाओं के अधिकारों और संरक्षण को और मजबूत किया है।
Divorce Wife Rights 2025
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में यह साफ कर दिया गया कि तलाक के बाद पत्नी का हक खत्म नहीं होता। यदि पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की है, तो उसके भरण-पोषण का जिम्मा अभी भी पूर्व पति पर होता है। सुप्रीम कोर्ट ने तो भरण-पोषण की राशि तक को बढ़ाने का निर्देश दिया, ताकि महिला को अपने जीवनयापन में किसी तरह की दिक्कत न हो।
कोर्ट ने एक केस में पहले तय 20,000 रुपये महीने के भरण-पोषण को बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति माह कर दिया। इसके साथ ही हर दो साल में इस राशि में 5% की सालाना वृद्धि भी तय की गई है, जिससे पत्नी की आर्थिक सुरक्षा समय के साथ बेहतर हो सके। कोर्ट ने ये भी कहा कि पति चाहे दोबारा शादी कर ले, लेकिन पहली पत्नी और उसके बेटे का हक बरकरार रहेगा—बेटे को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी के जीवन स्तर के अनुरूप ही उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए। मतलब, अगर पति की आमदनी बढ़ती है तो पत्नी को दी जाने वाली सहायता राशि भी बढ़नी चाहिए, ताकि वह आर्थिक रूप से सुरक्षित रहे। बेटे के 18 वर्ष के बाद उसकी जिम्मेदारी नहीं रहती, लेकिन पत्नी के लिए सहायता जारी रहेगी अगर वह दोबारा शादी नहीं करती।
तलाकशुदा महिलाओं के लिए सरकारी योजनाएँ
भारत सरकार और राज्य सरकारें तलाकशुदा या बेसहारा महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाती हैं—जैसे दिल्ली पेंशन स्कीम फॉर वुमन इन डिस्ट्रेस या संजय गांधी निराधार योजना। इन योजनाओं के तहत आर्थिक सहारा देने के लिए हर महीने निश्चित राशि दी जाती है, जिससे महिलाएं अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें।
दिल्ली की बात करें तो, यहां 18 साल से अधिक उम्र की तलाकशुदा, विधवा या बेसहारा महिलाओं को 2500 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलती है। इस सहायता को सीधे महिला के बैंक खाते में भेजा जाता है। यह योजना खास तौर पर गरीब, जरूरतमंद और लाचार महिलाओं के लिए बनी है, जिनके पास स्वयं का कोई आर्थिक स्रोत नहीं है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार की ‘स्वाधार गृह योजना’ भी है, जिसमें ऐसे महिलाओं को आश्रय, भोजन, कपड़े, काउंसलिंग, ट्रेनिंग और कानूनी सहायता दी जाती है। यहां उन्हें काम-काज सिखाया जाता है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और आगे की जिंदगी सम्मान से बिता सकें।
इसी तरह देश के कई राज्यों में ‘डेस्टिट्यूट/डिजर्टेड वाइफ पेंशन स्कीम’ है, जहां तलाकशुदा या छोड़ दी गई महिलाओं को 1000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है। महाराष्ट्र की संजय गांधी निराधार योजना के तहत भी तलाकशुदा महिलाओं को मासिक पेंशन मिलती है।
सरकार से किस प्रकार मिलती है सहायता
सरकारी योजनाओं के लिए आवेदन प्रक्रिया बेहद आसान रखी गई है ताकि हर जरूरतमंद महिला इनका फायदा उठा सके। महिला को नियमानुसार सम्बंधित विभाग में आवेदन करना होता है, जिसमें उसकी पहचान, तलाकनीमा/विधवा प्रमाणपत्र, और आय-सम्बंधी दस्तावेज देने होते हैं।
अधिकांश योजनाओं में शर्त होती है कि आय 1 लाख रुपये सालाना से कम हो। साथ ही महिला को राज्य का निवासी होना जरूरी होता है—जैसे दिल्ली में पिछले 5 साल से रहना जरूरी है। आवेदन स्वीकृत होते ही सहायता राशि सीधे बैंक खाते में आ जाती है।
अगर महिला को अस्थायी रूप से रहने की जरूरत है तो ‘स्वाधार गृह’ या ‘वन स्टॉप सेंटर’ में ठहरने, सलाह, प्रशिक्षण और सहायता मिलती है। ऐसे केंद्रों में चिकित्सा, कानूनी सलाह और मनोवैज्ञानिक समर्थन भी उपलब्ध है।
क्या महिला का सभी अधिकार खत्म हो जाता है?
इस धारणा में बिलकुल सच्चाई नहीं है कि तलाक के बाद महिला के सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। विधि के अनुसार अगर पति की आमदनी है, तो पत्नी को उसका हिस्सा भरण-पोषण के रूप में मिलेगा। पति दोबारा शादी कर ले तब भी पहली पत्नी और उसके बच्चों के अधिकार कायम रहेंगे—विशेषतः बच्चों का अधिकार पिता की पैतृक संपत्ति में बना रहेगा।
सरकारी योजनाएँ और अदालत के ताजा फैसले यह संदेश देते हैं कि तलाकशुदा महिला को न तो सामाजिक सुरक्षा में कमी होती है, न ही उसकी गरिमा में। उसका हक बना रहेगा और कानून उसे सुरक्षित रखने के लिए कड़े कदम उठाता है।
निष्कर्ष
तलाक के बाद महिला के अधिकारों में किसी तरह की कटौती नहीं होती, बल्कि सरकार और न्यायालय उसकी आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा के लिए विस्तृत व्यवस्थाएँ प्रदान करते हैं। महिलाओं को चाहिए कि वे इन योजनाओं और अधिकारों की जानकारी रखें और जब जरूरत हो तो उनका लाभ उठाएं। समाज को भी चाहिए कि ऐसी महिलाओं को प्रोत्साहन और समर्थन दे, ताकि वे अपने जीवन को आत्मसम्मान के साथ बढ़ा सकें।